गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि प्रदेश उपाध्यक्ष त्रयंबकनाथ त्रिपाठी ने कहा किपुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर भारतीय हतिहास की उन महान नारियों में से हैं, जिन्होंने नारी शक्ति, प्रशासनिक दक्षता और धर्म-परायणता का ऐसा अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसकी स्मृति आज भी भारतीय जनमानस में श्रद्धा के साथ अंकित है।
31 मईं, 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जनपद स्थित चांडी ग्राम में जन्मी अहिल्याबाई, प्रारंभ से ही विलक्षण प्रतिभा और प्रखर बुद्धि की धनी थीं। उनके पिता मानकोजी शिदे मराठा साम्राज्य में पाटिल के पद पर कार्यरत थे, जिन्होंने अपनी पुत्री को मर्यादा, नीति और धर्म का संस्कार बचपन से ही दिया। विवाह के उपरांत अहिल्याबाई मालवा राज्य की बहू बनीं और कालांतर में राज्य की महारानी। यह मार्ग सरल न था। युद्ध में पति खांडेराव की मृत्यु, फिर ससुर मल्हारराव का निधन और अंतत: अपने इकलौते पुत्र मालेराव की असामयिक मृत्यु- ये सारे आघात अहिल्याबाई पर एक के बाद एक टूटे, परंतु उन्होंने इन्हें दुर्बलता नहीं, बल्कि दायित्व का आह्वान समझा। 11 दिसम्बर, 1767 को जब उन्हें विधिवत राज्याभिषेक कर राजसिंहासन सौंपा गया, तब उन्होंने न केवल राज्य को स्थायित्व दिया, बल्कि अपनी दूरदृष्टि, न्यायप्रियता और धर्मनिष्ठा से उसे समृद्धि की ओर अग्रसर किया। उनकी न्यायिक व्यवस्था इतनी प्रभावी थी कि प्रजा उन्हें साक्षात धर्म का रूप मानती थी। उन्होंने देशभर में मंदिरों, कुओं, धर्मशालाओं और घाटों का निर्माण करवाया,
मध्यकाल की विषम परिस्थितियों में भी लोकमाता अहिल्याबाई ने अपने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय देते हुए मुगल आक्रांताओं द्वारा विध्वंस किए गए मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया जिसमें सोमनाथ मंदिर गुजरात ,विश्वनाथ मंदिर वाराणसी बद्री केदारनाथ धाम उत्तराखंड ,महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन ,ओंकारेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश ,भीमाहाशंकर मंदिर महाराष्ट्र, रामेश्वर मंदिर तमिलनाडु ,गोकर्ण शिव मंदिर कर्नाटक सम्मिलित हैं।अहिल्याबाई न केवल धर्मप्रेमी थीं, बल्कि उत्कृष्ट शासक भी थी। वह सैनिक रणनीति में निपुण थीं, राज्य कीआय-व्यय प्रणाली को व्यवस्थित करती थीं, और महिला सशक्तिकरण की मूर्तिमान प्रेरणा थीं। उन्होंने नारी शिक्षा पर जोर दिया। उन्होंने महिलाओं की एक सेना का गठन किया और उन्हें सैन्य प्रशिक्षण और युद्ध की तकनीक भी सिखाई। देवी अहिल्याबाई ने किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता दी और सिंचाई के लिए नहरों तालाबों वह जलाशयों का निर्माण कराया ।कृषि करो मे राहात देकर और डाकुओं से उनकी संपत्ति की रक्षा करके किसानों का आर्थिक बोझ काम किया ।1767 में अहिल्याबाई ने महेश्वर में हथकरघा आधारित कुटीर उद्योग स्थापित किया गुजरात और अन्य क्षेत्रों से बुनकरों को बुलाकर उन्हें घर और व्यापार की सुविधा दी महेश्वरी साड़िययोंको विशिष्ट पहचान उन्हीं के समय मिला।उनके शासनकाल में मालवा न केवल राजनैतिक रूप सें स्थिर रहा, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नयन का भी केंद्र बना। 13 अगस्त, 1795 को जब अहिल्याबाई इस लोक से विदा हुईं, तब वे अपने पीछे एक ऐसा आदर्श राज्य मॉडल छोड़ गई, जिसे शक्ति, सेवा और संयम का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर अखिलेश मिश्रा गुड्डू, घनश्याम पटेल, जयनाथ सिंह, श्रीकृष्ण पाल, अरविंद जायसवाल , बबिता जसरासरिया, पूनम सिंह, विभा बर्नवाल, ब्रजेश यादव, अजय सिंह, अवनीश मिश्रा, हरिवंश मिश्रा, पवन सिंह मुन्ना, आनन्द सिंह, ऋषिकेश दूबे,डा श्याम नारायण सिंह, विनय प्रकाश गुप्ता, मृगांक शेखर सिन्हा, पवन देव त्रिपाठी, सोभित श्रीवास्तव, राजीव शुक्ला,विवेक निषाद प्रबुद्ध जन पदाधिकारी व कार्यकर्ता मौजूद रहे।
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