क्या अब भारत के मुकाबले चीन के ज्यादा करीब हो रहा है रूस


नई दिल्ली। रूस और यूक्रेन के बीच भीषण युद्ध के एक साल पूरे होने जा रहे है। गत वर्ष 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन पर भीषण हमला शुरू किया था वहीं अमेरिका इन दिनों रूस के साथ ही चीन पर भी हमलावर है। जासूसी गुब्बारे को लेकर दोनों देशों के बीच गहमा-गहमी का दौर भी देखने को मिला था। कुल मिलाकर कहें तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हाई प्रोफाइल घटनाओं की एक सीरिज ने महा-शक्ति संबंधों की स्थिति को उजागर करके रख दिया है। रूस और चीन ने अमेरिका के नेतृत्व वाली वैश्विक जताई जा रही है कि वे आगे भी इसे नैकस्ट लेवल पर ले जाने की तैयारी में बीच अंतिम शेष परमाणु हथियार संधि में अपनी भागीदारी को निलंबित करने का ऐलान किया है। इधर वांग अपनी आठ


व्यवस्था को चुनौती दी है और संभावना

जो बाइडेन प्रशासन के अधिकारियों ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा है कि अगर को हथियार दे रहा है तो उससे दुनिया

मंत्रालय के मुताबिक, ब्लिंकन और चीनी
सप्लाई किए जाने के दावे भी किए जा रहे हैं। ऐसे में जानकारों का दावा है कि अगर चीन वर्तमान परिस्थिति में रूस को हथियारों की सप्लाई करता है तो रूस की अब भारत के मुकाबले चीन के ज्यादा बन जाएगी। करीब होता जा रहा है।में तनाव काफी बढ़ जाएगा। उससे एक खतरनाक और अनिश्चित स्थिति बन जाएगी। बाइडेन की मौजूदगी में यूक्रेन रहा है। के राष्ट्रपति व्लादिमिर जेलेंस्की ने कहा
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी रखने को लेकर चेतावनी देते हुए कहा कि इसके अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर गंभीर प्रभाव होंगे। अमेरिका के विदेश हैं। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने करीबी चीन से और बढ़ जाएगी। ऐसे में कि अगर चीन ने रूस को हथियार दिए ब्लिंकन ने चीन को यूक्रेन के खिलाफ कहा कि रूस मास्को और वाशिंगटन के ये भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या रूस तो उससे तीसरे विश्व युद्ध की स्थिति युद्ध में रूस का घातक समर्थन जारी युद्ध की नीति पर नहीं चलता भारत जियो पॉलिटिक्स के लिहाजे से देखा जाए तो भारत का इस मसले से सीधा कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि पहली बार ये कोई बड़ा युद्ध नहीं है। मसलन, भारत से इतर इसकी धुरी यूक्रेन रूस, नाटो, अमेरिका के ही ईर्द-गिर्द घूम रही है। ये और बात है कि अमेरिका वाशिंगटन रूस यूक्रेन जंग के बाद पश्चिमी देशों के निशाने पर मॉस्को आ गया और उस पर प्रतिबंधों की बारिश हो गई। लेकिन इससे इतरर भारत रूस के साथ अपने संबंधों और अपने हितों को ध्यान में रखकर रूस से कच्चा तेल समते तमाम चीजें खरीदता रहा। वहीं साल 2022 अमेरिका-चीन के लिए अब तक का सबसे बेहतर व्यापारिक साल रहा है। दोनों देशों के बीच इस साल 690 अरब डॉलर का व्यापार हुआ है। ऐसे में भारत व्यापार के मामले में कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है। लेकिन ये बात तो सच है

चीन के विदेश मंत्री जिन गांग ने की कहा कि उनका देश रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष को समाप्त करने में भूमिका के तौर पर आज मास्को में होंगे। इतना ये बात साबित हो गई कि चीन रूस निभाना चाहता है। यूक्रेन पर हमले में कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठतम विदेश नीति से भारत पर दोनों देशों की दोस्ती की कि रूस-चीन ईरान का एक समूह बन रूस को चीन का मजबूत राजनीतिक अधिकारी वांग यी के साथ म्यूनिख में दुहाई देकर इस बात का प्रेशर बनाने की रहा है जो पश्चिमी देशों के खिलाफ है।दिन की यूरोप यात्रा के आखिरी मुकाम
ही नहीं चीन द्वारा रूस को हथियार की
विश्व व्यवस्था में अमेरिकी प्रभुत्व को कमजोर करने में रूस और चीन की समान रुचि है, जिसका वे आकलन करते हैं कि यूक्रेन पर पश्चिमी देश एकजुट होकर साथ खड़े हैं। दोनों के बीच समझौता एक महत्वपूर्ण अंतर के साथ उनकी शीत युद्ध विरोधी पश्चिमी साझेदारी पर नहीं चलता है। को दोहरा सकता है जिसमें मास्को के बजाय बीजिंग प्रमुख भागीदार होगा। यूरेशियन भूभाग पर हावी होने वाली दो महान निरंकुश शक्तियों के एक साथ

समर्थन प्राप्त है। गांग ने बीजिंग में एक सुरक्षा सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि चीन इस बात को लेकर चिंतित है कि करीब एक साल से चल रहा युद्ध और बढ़ सकता है। तथा नियंत्रण से बाहर हो सकता है। उन्होंने कहा कि चीन शांति वार्ता की अपील करता रहेगा तथा चाहेगा कि एक राजनीतिक समाधान निकालने के लिए चीन की समझदारी का लाभ उठाया जाए। रूस यूक्रेन युद्ध के एक साल पूरे होने पर चीन एक पीस प्लान जारी करेगा। इसके लिए वह फ्रांस जर्मनी और ब्रिटेन से भी बातचीत कर निकट आने की संभावना है।

करीब एक घंटे तक बातचीत हुई थी। क्यों साथ आएं चीन और रूस

कोशिश कर रहा है कि वो उसका साथ दे। भारत ने 2014 में भी किसी का पक्ष नहीं लिया था, जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा जमा लिया था। यही नहीं यूक्रेन की संप्रभुता को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश किए गए प्रस्ताव पर वोटिंग से भी भारत ने दूरी बना ली थी। भारत पॉलिसी ही यही है कि वह युद्ध की नीति

मुश्किल परिस्थिति में जिनपिंग ने किया काम, भारत का तटस्थ रुख दे रहा ड्रैगन को मौका ?

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