-चौथे दिन भी घरों से लेकर नदी-सरोवरों के किनारे दी जलांजलि
-घरों में तिथि श्राद्ध कर्म के बाद ब्राह्मणों को कराया गया भोजन
आजमगढ़ । पितृ पक्ष में सनातन धर्मी परिवार दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धानवत दिखने लगा है। चौथे दिन मंगलवार को भी नदी-सरोवर के घाटों से लेकर घरों तक में लोगों ने श्रद्धा के साथ जलांजलि दी और जिनके यहां पिता की तिथि श्राद्ध होनी थी उन्होंने पुरोहित के साथ सारे कर्मकांड को पूरा करने के बाद भोजन कराया।
पहले दिन से ही पूर्वजों को श्रद्धा के साथ जलांजलि देने का क्रम जारी है। लोगों ने तिल, अक्षत व पुष्प के साथ पितरों के नाम जल अर्पित किया, तो वहीं जिनके पूर्वज के दिवंगत होने की तिथि रही उनके यहां सुबह स्नान के बाद पिंडदान और उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा भी दिया गया।
कुछ लोगों ने नदियों के किनारे पहुंचकर जहां स्नान के बाद सारे कर्मकांड कराए, वहीं तमाम लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने अपने घरों पर ही पुरोहितों को बुलाकर पिंडदान आदि कराया। उसके बाद दिवंगत पूर्वजों के नाम से भोजन निकाला गया और परंपरा के अनुसार उसे गो माता को खिलाया गया।
शहरी क्षेत्रों में ब्राह्मणों को ढूंढने में मशक्कत करनी पड़ी। गाय को भोजन खिलाने की परंपरा के नाते शहरी क्षेत्र में गाय खोजना भी मुश्किल भरा काम रहा। कारण कि शहर में अब गाय पालन का शौक नहीं के बराबर हो गया है।
उधर पितृ पक्ष में पूर्वजों के नाम से भोजन निकालने और ब्राह्मण को भोजन कराने की परंपरा के चलते घर की महिलाओं ने भी सुबह किचन को ठीक से साफ किया और उसके बाद स्नान कर भोजन बनाने में जुट गई थीं।
आजमगढ़ । पितृ पक्ष में सनातन धर्मी परिवार दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धानवत दिखने लगा है। चौथे दिन मंगलवार को भी नदी-सरोवर के घाटों से लेकर घरों तक में लोगों ने श्रद्धा के साथ जलांजलि दी और जिनके यहां पिता की तिथि श्राद्ध होनी थी उन्होंने पुरोहित के साथ सारे कर्मकांड को पूरा करने के बाद भोजन कराया।
पहले दिन से ही पूर्वजों को श्रद्धा के साथ जलांजलि देने का क्रम जारी है। लोगों ने तिल, अक्षत व पुष्प के साथ पितरों के नाम जल अर्पित किया, तो वहीं जिनके पूर्वज के दिवंगत होने की तिथि रही उनके यहां सुबह स्नान के बाद पिंडदान और उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान-दक्षिणा भी दिया गया।
कुछ लोगों ने नदियों के किनारे पहुंचकर जहां स्नान के बाद सारे कर्मकांड कराए, वहीं तमाम लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने अपने घरों पर ही पुरोहितों को बुलाकर पिंडदान आदि कराया। उसके बाद दिवंगत पूर्वजों के नाम से भोजन निकाला गया और परंपरा के अनुसार उसे गो माता को खिलाया गया।
शहरी क्षेत्रों में ब्राह्मणों को ढूंढने में मशक्कत करनी पड़ी। गाय को भोजन खिलाने की परंपरा के नाते शहरी क्षेत्र में गाय खोजना भी मुश्किल भरा काम रहा। कारण कि शहर में अब गाय पालन का शौक नहीं के बराबर हो गया है।
उधर पितृ पक्ष में पूर्वजों के नाम से भोजन निकालने और ब्राह्मण को भोजन कराने की परंपरा के चलते घर की महिलाओं ने भी सुबह किचन को ठीक से साफ किया और उसके बाद स्नान कर भोजन बनाने में जुट गई थीं।
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