अंतिम सांस तक मुलायम सिंह के दिल में धड़कता रहा आजमगढ़

संबंधों के धनी नेताजी ने हमेशा रखा पुराने संबंधों का ध्यान

चौधरी साहब ने पहचानी थी मुलायम सिंह की नेतृत्व क्षमता
आजमगढ़। 'इटावा अगर दिल है तो आजमगढ़ मेरी धड़कन'। यह बातें नेताजी मुलायम सिंह यादव हमेशा कहा करते थे, लेकिन यह उनका कोई जुमला नहीं, बल्कि हकीकत रही। अंतिम सांस तक वाकई उनके दिल में आजमगढ़ धड़कता रहा। पुराने कार्यकतार्ओं को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा, तो पुराने संबंधों का भी हमेशा ध्यान रखा।
राजनीति में जब चौधरी चरण सिंह का दबदबा हुआ करता था उस समय नेताजी की नेतृत्व क्षमता को उन्होंने पहचान लिया था।
पुराने समाजवादी नेता एवं मुलायम सिंह के साथ काम कर चुके हरिप्रसाद दुबे कहते हैं कि नेताजी संबंधों के इतने धनी थे कि पूर्व पीएम चंद्रशेखर से अलग होने के बाद भी उनके पुत्र को लोकसभा का टिकट देकर सांसद बनाया। आजमगढ़ में ईशदत्त यादव के न रहने पर उनके पुत्र नंदकिशोर यादव को राज्यसभा का सदस्य बनाया। इस तरह से उन्होंने खुद के परिवार के साथ कई नेताओं के परिवार के सदस्यों को आगे बढ़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।


उनके लिए हर एक कार्यकर्ता कीमती होता था। मंच पर पुराने कार्यकतार्ओं को कभी अपना परिचय नहीं देना पड़ता था, बल्कि वह खुद उसका नाम लेकर बुलाते थे।
 एक बार की बात है जब एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में वर्ष 1996 में केंद्र में सरकार बनी, तो मुलायम सिंह रक्षा मंत्री बनाए गए। आजमगढ़ से लगाव के कारण उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ सभा की थी। सभा समाप्ति के बाद घर जाते समय करउत गांव के कार्यकर्ता शिव बचन पासवान के पुत्र की बस की छत से गिरकर मौत हो गई। यह बात नेताजी के कान तक पहुंची, तो कुछ दिन बाद दोबारा आजमगढ़ आए और शिवबचन के घर पहुंचकर 50 हजार रुपये की सहायता दी। जाते समय कहा था कि आगे भी कोई जरूरत होगी तो मदद की जाएगी।
हरिप्रसाद दुबे ने बताया कि मुलायम सिंह यादव की नेतृत्व क्षमता को बहुत पहले ही चौधरी चरण सिंह ने पहचान लिया था। बरदह प्राइमरी पाठशाला में वर्ष 1985 में चुनावी सभा के दौरान जब दुबे ने चौधरी साहब के नाम का नारा लगाया, तो चौधरी साहब ने मना कर दिया था और कहा था कि मुलायम सिंह का नारा लगाओ, यह मेरे उत्तराधिकारी हैं। उस समय मुलायम सिंह लोकदल के प्रदेश थे। चौधरी साहब नहीं चाहते थे कि पुत्र अजित सिंह राजनीति में आएं। एक बार अजित के कहने पर मैंने पैरवी कर दी, तो जवाब मिला कि फिर तुम लोग राजनीति से इस्तीफा दे दो। वह चाहते थे कि अजित सिंह अपनी इंजीनियर की ही नौकरी करें।

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