आलू में पिछेती झुलसा का प्रकोप बढ़ा

आजमगढ़। पिछले सप्ताह से पहाड़ों पर हुई बर्फबारी के कारण मैदानी क्षेत्रों में तापमान काफी गिर गया है और यह 4 से 6 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच में बना हुआ है जिससे रबी की फसल में पाला पड़ने की संभावना बढ़ गई है। किसान भाई इस समय अपने खेत में नमी बनाए रखें, धान का पुआल खेत में मल्चिंग के तौर पर फैला दें। छोटे काश्तकारों को खेत के किनारे मेंड़ पर धुआं करने से पाला से राहत मिल  सकती है।
          कड़ाके की ठंड में तापमान गिरने से आलू की फसल में रोग लगने की संभावना बढ़ गई है इसमें झुलसा रोग प्रमुख है समय रहते इसका प्रबंधन ना किया गया तो आलू की खेती करने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। 
          कृषि विज्ञान केंद्र, लेदौरा के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ एलसी वर्मा ने बताया कि मौसम खराब होने पर आलू की फसल में फफूद का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। सुरक्षा की दृष्टि से मैंको जेब एम 45 की 3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। बढ़ती ठंड व कोहरे के बीच किसानों को चना, सरसों, अरहर एवं सब्जियों की फसल की सुरक्षा को लेकर सतर्कता बरतने की जरूरत है। तापमान 4 से 5 डिग्री से कम होने से पाला पड़ने की आशंका बढ़ गयी है। पाले से पत्तियों की कोशिकाएं फट जाती हैं और फसल सूखने लगती है। 
        फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा अखिलेश यादव ने बताया कि 8-10 किग्रा सल्फर डस्ट प्रति एकड़ के अथवा घुलनशील गंधक 600 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव कर पाला के प्रकोप से फसल को बचा सकते हैं। डेरेक फफूंदनाशी 250 मिली 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे पछाती झुलसा से आलू की फसल को बचायें।
        उद्यान वैज्ञानिक उमेश कुमार ने बताया कि मेटालैक्सिल और मैनकोजेब मिश्रित दवा की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है। एक हेक्टेयर में 800 से लेकर 1000 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होगी।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ