मुज़फ्फरनगर। जानसठ तहसील के एसडीएम जयेंद्र सिंह एक बड़े भूमि विवाद में फंसते नज़र आ रहे हैं। उन पर गंभीर आरोप लगे हैं कि उन्होंने 750 बीघा ज़मीन को कथित रूप से 3 करोड़ रुपये की रिश्वत लेकर भूमाफिया के नाम कर दिया। इस मामले में अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने पर सोमवार को पीड़ितों ने जिलाधिकारी उमेश मिश्रा से मुलाकात कर न्याय की गुहार लगाई।पीड़ित पक्ष ने आरोप लगाया कि 10 दिन बीत जाने के बावजूद अब तक किसी भी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। जबकि डीएम ने तीन एडीएम की जांच समिति गठित कर दी थी। पीड़ित ईशान नंदवानी ने मांग की कि एसडीएम की संपत्ति की जांच की जाए, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि रिश्वत की राशि कहां गई।यह विवाद इसहाक वाला गांव स्थित डेरावाल कोऑपरेटिव फार्मिंग सोसायटी की जमीन को लेकर है, जो 1962 में गठित हुई थी। सोसायटी के कुल क्षेत्रफल 743 हेक्टेयर में से 23 एकड़ जमीन 1972 में सदस्य हरबंस द्वारा अलग कर ली गई थी।
आज यह ज़मीन हरबंस के पोते और जीवन दास के बेटे गुलशन के बीच विवादित है। मामला एसडीएम कोर्ट में लंबित था।पीड़ितों का आरोप है कि एसडीएम जयेंद्र सिंह ने 19 जुलाई 2025 को सुनवाई के बाद न केवल सोसायटी की 600 बीघा ज़मीन बल्कि 150 बीघा सरकारी भूमि भी अमृतपाल के नाम दर्ज कर दी। जबकि 2018 में तहसील प्रशासन ने हाईकोर्ट को सूचित किया था कि हरबंस का इस जमीन पर कोई अधिकार नहीं है।डीएम उमेश मिश्रा ने प्रकरण को गंभीर मानते हुए तीन एडीएम की समिति बनाई है। उनका कहना है कि “जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी”। मगर अब तक की निष्क्रियता ने प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।यह कोई पहला मामला नहीं है जब एसडीएम जयेंद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों। पूर्व विधायक विक्रम सैनी के करीबी लोगों से 10 लाख की रिश्वत लेने का भी उन पर आरोप लग चुका है। उस प्रकरण में उन्होंने बाद में राशि वापस की थी, फिर भी वे आज भी उसी पद पर बने हुए हैं।
क्या जांच निष्पक्ष होगी या फिर रफादफा?
यह सवाल अब गांववालों और आम जनता के बीच चर्चा का विषय बन गया है। सभी की निगाहें अब डीएम की जांच समिति और प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं।
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