मुस्लिम-दलित एकता से बदल सकती है यूपी की सत्ता।

दलित-मुस्लिम साथ आएंगे, सत्ता खुद चलकर आएगी!  
जिन्होंने वोट लिया, पर हिस्सेदारी नहीं दी—अब उनसे सवाल होगा!  
बसपा ने दी 23 सीटें, सपा ने सिर्फ 4—अब फ़ैसला आपका!  
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम और दलित समुदाय की साझा जनसंख्या लगभग 43% तक पहुँचती है, जो 2027 के विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत है; ऐसे में यह गठजोड़ सिर्फ एक सामाजिक समीकरण नहीं बल्कि सत्ता परिवर्तन की कुंजी बन सकता है। 2019 में सपा-बसपा गठबंधन ने 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन यह गठबंधन ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच नहीं उतर पाया, जिससे सपा को सिर्फ 5 और बसपा को 10 सीटें मिलीं। बसपा की जीत में मुस्लिम और दलित वोटों की स्पष्ट एकजुटता दिखी, जबकि यादव समुदाय का समर्थन निर्णायक रूप से अनुपस्थित रहा, जिससे यह गठबंधन कमजोर साबित हुआ। 2024 में जब सपा ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, मुस्लिम समाज ने पूरी ईमानदारी और ताक़त से वोट दिया, लेकिन सपा ने मुस्लिमों को सिर्फ 4 सीटें दीं, जबकि बसपा पहले ही 23 सीटें मुस्लिम समाज को दे चुकी थी—यह अंतर दर्शाता है कि किस दल ने मुस्लिम समुदाय को वास्तविक हिस्सेदारी दी और किसने सिर्फ वोट लिया। अब मुस्लिम समाज के सामने यह बड़ा सवाल है कि वह किस राजनीतिक दल के साथ खड़ा हो: उस दल के साथ जो उसे सम्मान, हिस्सेदारी और सत्ता में भागीदारी दे सके, या उस गठबंधन के साथ जहाँ उसका वोट तो लिया जाता है लेकिन उसकी राजनीतिक हैसियत को नज़रअंदाज़ किया जाता है। यदि मुस्लिम और दलित समुदाय एकजुट होकर बसपा को समर्थन देते हैं, तो 43% वोट के साथ वे न सिर्फ सरकार बना सकते हैं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति की दिशा ही बदल सकते हैं। ऐसे में मुस्लिम समाज को भावनाओं से नहीं, रणनीति और समझदारी से तय करना होगा कि उसका भविष्य किसके साथ सुरक्षित और प्रभावशाली हो सकता है।

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