बहुजन समाज पार्टी के हाथी की चिंघाड़ से कांपी सत्ता की दीवारें!
राजनीतिक दलों की धड़कनें तेज, जनता की उम्मीदें ऊंची।
लखनऊ बना सियासी रणभूमि, हर कदम पर नजरें टिकीं।
संपादक -मनीष कुमार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। सियासी गलियारों में हलचल है, रणनीतियाँ बदल रही हैं, और हर दल की धड़कनें तेज हो चुकी हैं। वजह है—9 अक्टूबर को लखनऊ में होने वाली चलो लखनऊ रैली। यह कोई आम रैली नहीं, बल्कि एक ऐसी जनज्वाला है जो सत्ता के समीकरणों को झकझोरने का माद्दा रखती है। बहुजन समाज पार्टी की इस रैली ने सपा, कांग्रेस और भाजपा—तीनों को चौकन्ना कर दिया है। हर पार्टी की नजरें अब इसी तारीख पर टिकी हैं, क्योंकि लखनऊ की सड़कों पर जो हुंकार गूंजने वाली है, वह सिर्फ एक दल की आवाज नहीं, बल्कि दबे-कुचले समाज की चेतना है।
हाथी की चिंघाड़ से गूंजेगा लखनऊ:-
बहुजन समाज पार्टी ने इस रैली को "चलो लखनऊ" नाम देकर एक भावनात्मक और ऐतिहासिक संदर्भ जोड़ दिया है। यह नारा सिर्फ एक आयोजन का संकेत नहीं, बल्कि एक आंदोलन की शुरुआत है। "हाथी की चिंघाड़" अब प्रतीक बन चुका है उस आक्रोश का, जो वर्षों से सत्ता की चौखट पर खड़ा था, लेकिन अब सड़कों पर उतरने को तैयार है। लखनऊ की धरती पर यह चिंघाड़ सिर्फ एक दल की शक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की पुकार है।
सपा, कांग्रेस, भाजपा—तीनों में बेचैनी:-
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस रैली ने तीनों प्रमुख दलों की रणनीति को हिला दिया है। समाजवादी पार्टी अपने पारंपरिक वोट बैंक को बचाने की जद्दोजहद में है। उसे डर है कि बहुजन चेतना की यह लहर कहीं उसके जनाधार को न तोड़ दे। कांग्रेस गठबंधन की संभावनाओं को टटोल रही है, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा कि इस जनज्वार के सामने उसकी पुरानी रणनीति कितनी कारगर होगी। भाजपा अपनी पकड़ मजबूत रखने के लिए नए समीकरण बना रही है, लेकिन उसे भी एहसास है कि यह रैली सिर्फ एक दल की नहीं, बल्कि एक वर्ग की आवाज है।
जनता की जुबान पर एक ही सवाल:-
9 अक्टूबर को लखनऊ से उठेगी वो लहर जो 2027 के विधानसभा चुनाव की दिशा तय करेगी?" यह सवाल अब हर गली, हर चौपाल और हर सोशल मीडिया पोस्ट पर गूंज रहा है। लोग जानना चाहते हैं कि क्या यह रैली सिर्फ एक शक्ति प्रदर्शन है या एक नई राजनीतिक धारा की शुरुआत।
चलो लखनऊ: एक रैली नहीं, जनभावना की ज्वाला:-
इस रैली की तैयारी महीनों से चल रही है। गांव-गांव में पोस्टर, सोशल मीडिया पर हैशटैग, और शहरों में जनसंपर्क अभियान—सब कुछ इस एक दिन को ऐतिहासिक बनाने के लिए किया जा रहा है। बहुजन समाज पार्टी इसे सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि एक आंदोलन मान रही है। मायावती की चुप्पी और कार्यकर्ताओं की सक्रियता ने इस रैली को और रहस्यमय बना दिया है।
सड़क से संसद तक गूंजेगी आवाज:-
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर इस रैली में अपेक्षित जनसमूह उमड़ता है, तो इसका असर सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहेगा। यह आवाज दिल्ली तक पहुंचेगी, और आने वाले चुनावों में गठबंधन, एजेंडा और नेतृत्व के सवालों को नए सिरे से परिभाषित करेगी।
मीडिया की नजरें भी टिकीं:-
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया इस रैली को लेकर खास कवरेज की तैयारी में है। लाइव रिपोर्टिंग, विश्लेषण, और सोशल मीडिया ट्रेंड्स पर नजरें गड़ी हुई हैं। कई चैनलों ने इसे "2025 की सबसे बड़ी राजनीतिक रैली" करार दिया है।
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