बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है होली का त्यौहार

◆ होली के पर्व पर शराब पीना, मांस खाना व केमिकल युक्त रंग गुलाल के प्रयोग की इजाजत नहीं देता सनातन धर्म


मऊ। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होली का त्यौहार को लेकर जनपद में दो मत देखने को मिला जनपद के कुछ हिस्सों में सोमवार की रात्रि को होलिका दहन किया गया। कुछ विद्वानों का मत था कि जीस रात्रि को होली का दहन होता है उसकी सुबह होली मनाई जाती है। लेकिन समूचे जनपद में होली का त्यौहार बुधवार को ही मनाया जाएगा, और होलिका दहन मंगलवार की रात्रि में 12:00 बजे के बाद किया जाएगा। होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह सनातनियों का एक प्रसिद्ध त्योहार है, जो विश्वभर में मनाया जाने लगा है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है मथुरा की लठमार होली विश्व में अपना एक अलग ही पहचान रखती है। यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं वहाँ भी मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है।राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है। गुझिया होली का प्रमुख पकवान है जो कि मावा खोया और मैदा से बनती है और मेवाओं से युक्त होती है इस दिन कांजी के बड़े खाने व खिलाने का भी रिवाज है। नए कपड़े पहन कर होली की शाम को लोग एक दूसरे के घर होली मिलने जाते है जहाँ उनका स्वागत गुझिया,नमकीन व ठंडाई से किया जाता है। होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक इस त्यौहार पर वर्तमान समय में कई बुराइयां हाबी होती दिख रही हैं, होली के दिन शराब पीना, मांस खाना, केमिकल युक्त रंग गुलामों का प्रयोग करना जोकि सनातन परंपरा पर बहुत बड़ा आघात है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि कोई भी धर्माचार्य सनातन परिवार के अगुआ इस विषय पर ना ही अपना विचार दे रहे हैं नाही विरोध प्रकट कर रहे हैं अगर यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब अच्छाई पर बुराई हावी होती दिखेगी।

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