कंधरापुर/आजमगढ़| किशुनदासपुर में हो रहे श्रीराम कथा के आठवें दिन उमड़े जन सैलाब को सम्बोधित करते हुए पंडित सीताराम नाम शरण जी महराज ने कहा कि "कर्म प्रधान विश्व कर राखा जो जस करहू जस करहॅू तस फल चाखा संसार के प्राणियों का जैसा कर्म होगा वैसा ही परिणाम प्राप्त होता है परन्तु सतकर्म सदैव ही फलीत होता है। मनुष्य अपने कर्मों के आधार पर ही 84 लक्ष्य योनियों में भटकता है। संसार के प्राणियों का कल्याण भगवत भजन एव सीताराम नाम जप से हो सकता है। सीताराम नाम जप करने वाले सतकर्मीयों का कभी अनिष्ट नहीं होता है, अपने सतकर्मों कई जन्मों के तपस्या के उपरान्त राजा दशरथ कौशिल्या सुमित्रा और कैकेई को प्रभु के ही रूप में जन्माअवतरण श्री राम, लक्षमण, भरत, शत्रुधन के रूप में हुआ और भगवन राम के परिवार का जीवन दर्शन समाज के लिये भाई भाई के भाई-बहन के लिये माता-पिता के लिये तथा सबके लिये अनुकरणीय है। प्रातःकाल उठ के रघुनाथ, मात पिता गुरु नावही माथा ।।
यह एक ऐसा संस्कार है, जो सबके परिवार के लिये एक आदर्श है, पंडित सीताराम नाम नें कहा कि श्री सीताराम नाम श्रवण से संसार के प्राणियों का जीवन धन्य हो जाता है। संसार में परहित सरिस धर्म नहीं भाई पर पीड़ा सम नह अधिमाही अर्थात दुसरों को कष्ट देने जैसा कोई पाप नहीं और दुसरों का उपकार करना जैसा धर्म नहीं है। भगवान राम ने अपने रामराज में किसी को दुःखी नहीं किया और राजा का धर्म भी यही है। वह प्रजा की हर तरह से देखभाल करे उसे कोई कष्ट न हो अगर किसी राजा के क्षेत्र में प्राणी दुखी हैं तो राजा महापाप का भागी होता है। उपरोक्त कथा का संचालन श्री कृपाशंकर पाठक ने किया तथा श्री ज्ञानू राय, नवीन राय, आशीष, अमित, पीयूश, सुशील, डा० बंगाली, आनन्द, श्यामनरायन, अविनाश राय, गोपाल साहू, ज्ञानू राय, सुरेश, दिनेश, लाल बाबा, प्रमोद अनील महिमा, रिंका अन्नू, नीतू आदि लोगो ने भारी संख्या में श्रीराम कथा में उपस्थित रहे।
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