कोयलसा ब्लाक के ग्राम हिसामुद्दीनपुर में दी गई जानकारी
आजमगढ़। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र लेदौरा की ओर से गुरुवार को अपर निदेशक प्रसार प्रोफेसर आरआर सिंह के निर्देशानुसार कोयला ब्लाक के ग्राम हिसामुद्दीनपुर में फसल अवशेष प्रबंधन परियोजना के अंतर्गत ग्राम स्तरीय कृषक जागरूकता अभियान का आयोजन किया गया। इसमें पराली जलाने से होने वाले दोहरे नुकसान की जानकारी दी गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता गांव के कृषक धीरेन्द्र कुमार सिंह ने की।प्रोफेसर आरआर सिंह ने किसानों को बताया गया कि पराली को खेत में मिलाएं तथा खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाएं। पराली में बिल्कुल भी आग ना लगाएं, क्योंकि इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है एवं आवश्यक पोषक तत्वों का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष हमारे खेत के लिए भोजन का काम करते हैं जो कि खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ उसमें उत्पादित उपज की गुणवत्ता को भी बढ़ाते हैं। उन्होंने बताया कि फसल अवशेषों को पलवार या मल्च की तरह खेती में प्रयोग कर विभिन्न फसलों में खरपतवार के प्रकोप को भी कम किया जा सकता है, साथ ही मृदा के सेहत में सुधार किया जा सकता है। फसल अवशेषों को सतह पर रखने से कम पानी की आवश्यकता होती है। मृदा में पानी के प्रवेश की क्षमता में सुधार होता है तथा मृदा के अपरदन में कमी होती है।
केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा.एलसी. वर्मा ने बताया कि 1 टन पराली को खेत में मिलाने पर 5.5 किलोग्राम नत्रजन , 2.3 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटाश, 1.2 किलोग्राम गंधक के अलावा आवश्यक मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व सूक्ष्मजीव होते हैं जो खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में काम आते हैं । 1 टन पराली में आग लगाने से 3 किलोग्राम सूक्ष्म कणों के भाग, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड गैस, 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड गैस , 199 किलोग्राम राख , 2 किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइड गैस अलावा विभिन्न तरह का प्रदूषण होता है जो हमारे शरीर में आंखों व फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। फसल अवशेष प्रबंधन की कई मशीनें हैं जो किसानों को अनुदान पर देय हैं जिनके द्वारा किसान पराली को आसानी से खेत में मिला सकते हैं तथा वेस्ट डिकम्पोजर द्वारा कम समय में पराली को सड़ाकर आगामी फसल बोई जा सकती है यह मशीनें हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, जीरो टिलेज मशीन, श्रम मास्टर मल्चर , रिवर्सिबल एमबी प्लाऊ जो किसानों को 80% तक अनुदान पर देय हैं।
पादप प्रजनन वैज्ञानिक डॉक्टर अखिलेश यादव ने बताया कि यदि आधा किलोग्राम यूरिया प्रति विस्वा की दर से फसल अवशेष पर छिड़काव किया जाए तो पुआल खेत में गलकर खाद में परिवर्तित हो जायेगा।
फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा. महेंद्र गौतम ने बताया कि पूसा डी कंपोजर से फसल अवशेष प्रबंधन का कल्चर तैयार करने के बाद 10 लीटर डीकंपोजर घोल को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़का जाता है। डीकंपोजर का छिड़काव करने से फसल का अवशेष जैविक खाद में बदल जाता है और रासायनिक उर्वरकों के कारण बिगड़ी मिट्टी की दुर्दशा में भी सुधार होता है
हिसामुद्दीनपुर के शीतला सिंह, सतेन्द्र सिंह सहित 140 किसानों ने भाग लिया।
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