देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का कहना था कि इंतजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं। इसलिए हमें मौकों का इंतजार करने की बजाय वर्तमान हालात में ही अपने लिए मौके खोजने चाहिए।
हर इंसान में किसी न किसी तरह की रचनात्मकता जरूर होती है। इसलिए हमे लगातार अपनी रचनात्मकता को निखारने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम अपने जीवन में और भी बेहतर कर सके। क्रिएटिव वह है, जो केवल स्वप्न ही नहीं देखता बल्कि उन स्वप्नों को साकार करने के लिए काम करता है। क्रिएटिव वह है, जो अंधेरों में भी कूदने का साहस रखता है। क्रिएटिव वह है, जो चुनौतियों को स्वीकारने में तत्पर रहता है। सीखने की कोई उम्र नहीं होती
रोमन देशभक्त मार्कस पोर्सियस केटो ने अस्सी साल की उम्र में ग्रीक भाषा सीखी। महान जर्मन-अमेरिकन कलाकार मैडम अर्नस्टाइन शुमैन-हेक दादी बनने के बाद अपनी संगीत सफलता के शिखर पर पहुंची। यूनानी दार्शनिक सुकरात ने वाद्ययंत्र बजाना तब सीखा, जब वे अस्सी साल के थे। माइकलाएंजेलो अस्सी साल की उम्र में अपने सबसे महान कैनवास पर पेटिंग कर रहे थे। अस्सी साल की उम्र में सियोस सायमनाइडस ने कविता का पुरस्कार जीता, और लियोपॉल्ड वॉन रेके ने अपनी हिस्ट्री आफ द वर्कड शुरू की, जिसे उन्होंने बानवे साल की उम्र में पूरा किया। अठासी साल की उम्र में जॉन वेस्ली मेथोडिज्म पर भाषण के द्वारा मार्गदर्शन दे रहे थे।
चुनौतियों को स्वीकारें
शीर्षस्थ हार्ट सर्जन माइकल डेबेकी ने खून का पहला रोलर पंप 1932 में इजाद किया था। उनका बनाया पंप आज भी बाइपास सर्जरी में प्रयुक्त होता है। नब्बे साल की उम्र में डॉक्टर डेबेकी को एक नए आविष्कार पर प्रयोग शुरू करने की अनुमति मिली। यह एक छोटा पंप था, जिसे गभीर हृदय रोगियों के सीने में लगाया जा सकता था। डेबेकी सिर्फ शोध से ही संतुष्ट नहीं थे। वे सर्जरी भी करते रहे। उनके बारे में एक सहयोगी ने कहा था, उन्होंने जितना किया है, उतना करने के लिये बाकी लोगों को पांच-छह जन्म लेने पड़ेगे।' डेबेकी ने नब्बे साल की उम्र में अपने जीवनदर्शन का सार इस तरह से व्यक्त किया था, जब तक आपके सामने चुनौतियां हैं और आप शारीरिक तथा
मानसिक रूप से सक्षम है, तब तक जीवन रोमांचक और स्फूर्तिवान है। जीवन के प्रत्येक पल को पूरे उत्साह के साथ जीना चाहिए मानव जीवन ईश्वर का अनमोल उपहार है। ईश्वरीय प्रेम हमारे मस्तिष्क, हृदय तथा आध्यात्मिक शक्तियों के विकास का आधार है। लोक कल्याण की भावना से ओतप्रोत होकर सफल जीवन जीने के लिए प्रत्येक मनुष्य द्वारा इसी ईश्वरीय ज्ञान रूपी शक्ति का भरपूर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। हम जैसा सोचते तथा करते हैं वैसा ही हो जाता है। हमारा अवचेतन मन इसे साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नया लक्ष्य निर्धारित करने के लिए बढ़ती उम्र कोई बाधा नहीं है। उत्साह सबसे बड़ी शक्ति है तथा निराशा सबसे बड़ी कमजोरी है। इसलिए हमें जीवन के प्रत्येक पल को पूरे उत्साह के साथ जीना चाहिए।
उद्देश्य, लक्ष्य और उत्साह ही किसी को चैंपियन बनाते हैं अधिकतर लोग समझते हैं कि सफल होने की एक उम्र होती है। यह ठीक है कि उम्र व्यक्ति की शारीरिक क्षमता कम कर सकती है, लेकिन उसके अनुभव, जुझारूपन और उत्साह को नहीं। उद्देश्य, लक्ष्य और उत्साह ही किसी को वैधियन बनाते हैं। अपने उद्देश्य को प्राप्त करने, प्रयास करने और अपने लक्ष्य को पाने की कोई उम्र नहीं होती। व्यक्ति किसी भी उम्र में यह सब प्राप्त कर सकता है। हां, इसके लिए उसके संकल्प, उद्देश्य, हृदय में उत्साह, प्रसत्रता व काम करने की ललक होनी चाहिए। जरूरत है, अपनी आआंतरिक सुप्त शक्तियों को जागृत करने की और अपने काम को लगन व जोश से अंजाम देने की। जीवन का समय बीतकर वापस नहीं लौटता। इसीलिए हमें हर पल मौकों का इंतजार करने की बजाय वर्तमान हालात में ही अपने लिए मौके खोजकर और अपना कर्म कर सफलता के नए मापदंड स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।
हमें जीतना आना चाहिए सबसे बड़ा रचनाकार परमात्मा हमारी आत्मा का पिता है। हम ब्रहमाण्ड के उस महान रचनाकार के पुत्र है। परमात्मा की बनाई इस पूरी सृष्टि की भलाई के लिए काम करके हमें अपने पुत्र होने का दायित्व निभाना चाहिए। इसके लिए हमें कोई ऐसा काम करना चाहिए जिसे हम हमेशा से करना चाहते थे। इसके लिए हम नए विषयों का अध्ययन करें और नए विचारों की जांच करें।
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