पद्म पुराण में कार्तिक अमावस्या की रात्रि में दीप ज्योति के महत्व की चर्चा है।
प्रतिवर्ष हम कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से यम द्वितीया तक पंच दिवसीय शारद महोत्सव मनाते हैं, किंतु इस बार यह उत्सव 6 दिनों तक (10 से 15 नवंबर) मनाया जा रहा है उत्तम स्वास्थ्य की प्रतीक धन त्रयोदशी की अब 'राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा है। आयुर्वेद की नायाब दुर्लभ वनौषधियां हमारे जीवन की जड़ी हैं। इसी दिन हम अकाल मृत्यु निवारण के लिए यमराज को दीपदान करते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास में दीपदान की विशेष महिमा है। इस दिन तिल के तेल से दीप जलाने से धन-धान्य की अभिवृद्धि होती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी तिल की प्रकृति ऊष्ण है, इसलिए दीपोत्सव के समय सर्दी का आगाज हो जाने से तिल के तेल का सेवन शारीरिक पुष्टि के लिए भी उत्तम माना गया है। वर्षा ऋतु के कारण चारों और जल भराव या अन्य कारणों से आस- पास कई खतरनाक कीटाणुओं का बाहुल्य हो जाता है। ऐसे में प्राचीन काल से ही पहला सुख निरोगी काया, यानी उत्तम स्वास्थ्य घर-आंगन को स्वच्छ और सुंदर बनाए रखने पर ही संभव है। तभी तो छोटी दिवाली तक लोग अपने घरों की साफ-सफाई करने में व्यस्त रहते हैं। महिलाएं भी रूप चौदस के दिन उबटन आदि से शारीरिक शुद्धि की ओर ध्यान देती हैं। कार्तिक अमावस्या को महालक्ष्मी की पूजा का विधान है। रात्रि में महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना के साथ-साथ दीपदान की परंपरा है। दीपोत्सव के दिन जलती दीपकों की पात अंतर्मन को खुशियों से भर देती हैं। पद्म पुराण में कार्तिक अमावस्या की रात्रि में दीप ज्योति का उल्लेख किया गया
साथ-साथ आज स्थितियां विपरीत हो रही हैं। दीपोत्सव का दिन आनंद, उल्लास और एक-दूसरे के लिए खुशियां बांटने का सुनहरा दिन है। चारो ओर जलती दीपों की पंक्तियां स्वयं जलकर भी अपने पास अंधेरा रख चारो ओर उजाले से सबको खुशियां बांटती हैं। क्यों न हम भी इस दिन जरूरतमंदों और दीन-दुखियों के जीवन में खुशियों के दीप जलाएं। तभी हम कुलदीपक कहलाने के अधिकारी होंगे। संस्कृत वाङ्मय के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि इस दिन को पूर्व में यक्ष रात्रि और
है। बचपन की वे मधुर स्मृतियाँ कितनी सुकूनभरी हैं, जब हम दीपकों की पांत जलाने खेतों में बने मंदिरों में जाते थे। पशुओं के भी शृंगार किए जाते थे। परिवार आपस में एक साथ में बैठकर मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करता था दीपोत्सव जैसे महापर्व पर विदेशों से भी लोग अपने वतन को लीटते हैं और गांव की मिट्टी की यादों को तरोताजा करते हैं। समय के कालरात्रि के रूप में मनाए जाने के साक्ष्य मिलते हैं। कार्तिक अमावस्या के दिन घर-घर में श्रीगणेश, नवग्रह, पोडशमातृका और अन्य देवों के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस दिन लक्ष्मी स्तोत्र, विष्णु सहस्त्रनाम और श्रीसूक्त आदि के जाप के साथ ध्यान की परंपरा है। कार्तिक अमावस्या की रात्रि विशेष फलदायी मानी जाती है, इसलिए इस
रात्रि का महत्व स्वयं सिद्ध है। दूसरी और इस रात्रि को तंत्र विद्या से भी जोड़ा जाता है। दीपोत्सव के दिन कृषक वर्ग अपनी नई फसल और विक्रमादित्य का राजतिलक एवं भगवान महावीर के निर्माण दिवस जैसे कई संदर्भों से इस पर्व का वैशिष्ट्य स्वतः डॉ. शंकरलाल शास्त्री स्पष्ट हो जाता है। इस दिन पशुओं के संरक्षण की प्रतीक बंदनवार और गोवर्धन के दिन गोधन पूजा, ये सभी परंपराएं हमें पशुओं में भी देवों का वास मानकर उनकी पूजा का अनूठा संदेश देती हैं। इस दिन पटाखों की जलती लड़ियां जीवन की कड़ियों को तोड़ न डालें, इस दृष्टि से पटाखों का उपयोग न करना उत्तम है। पटाखों से दूरी जैसा निर्णय पर्यावरण को संरक्षित करेगा, साथ ही बड़े-बुजुर्गों, पशु- पक्षियों और बीमार व्यक्तियों के लिए भी लाभदायक होगा। ऐसे कृत्यों को संपादित कर हम सच्ची और अच्छी दिवाली मना सकेंगे।
...............................लेखक ( शंकर लाल शास्त्री )
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