श्मशान तक नहीं रास्ता! कैबिनेट मंत्री के घर से चंद कदम दूर दलित बस्ती की बेबसी, वायरल वीडियो ने खोली विकास की पोल!

भाषणों में विकास, ज़मीनी हकीकत में बेबसी
क्या कोई सुनेगा इस आवाज़ को?
(संवाददाता,-योगेश कुमार)
मुज़फ्फरनगर। सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे एक वीडियो ने उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री और पुरकाजी विधायक अनिल कुमार के विकास के दावों की सच्चाई को बेनकाब कर दिया है। मामला ज़िले की ग्राम पंचायत बागोंवाली का है, जहां दलित समाज के लोगों को अपने परिजनों का अंतिम संस्कार भी इज्जत के साथ करने का अधिकार नहीं मिला। वजह – श्मशान घाट तक पक्का रास्ता ही नहीं है। शमशान घाट तक ईख के खेत से होकर जाना पड़ता है। बीते दिनों हुई बारिश से खेतों में भारी जल भराव हो गया था। इसी दौरान भागोवाली गांव निवासी राकेश मेडियन का देहांत हो गया उनकी शव यात्रा एक और जल भराव के बीच से होकर शमशान पहुंची जिसे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।किसी मशहूर शायर ने कहा था कि वो आंखें तो देता है मगर नूर छीन लेता है.. इस शेर को चरितार्थ करने का एक वाक्य गांव बागोवाली के श्मशान घाट पर देखने को मिला कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार ने श्मशान घाट में एक बुर्जी तों बनवा दी लेकिन शमशान घाट तक रास्ता नहीं बनवाया जिसकी वजह से अंतिम यात्रा में भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।इस बेहद मार्मिक वीडियो में देखा जा सकता है कि हाल ही में गांव निवासी विकास मेडियन के पिता के निधन के बाद परिजनों को कीचड़, खेतों और ऊबड़-खाबड़ रास्तों से होकर अर्थी को कंधों पर उठाकर श्मशान तक ले जाना पड़ा। यह दृश्य न केवल दलित समाज की दुर्दशा को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि मंत्री अनिल कुमार के अपने विधानसभा क्षेत्र में ही विकास की तस्वीर कितनी धुंधली है।मंत्री और ग्राम प्रधान पर उठे सवाल
यह चौंकाने वाली बात है कि बागोंवाली गांव मंत्री अनिल कुमार के निवास स्थान से महज़ कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बावजूद इसके यहां के दलित समाज को बुनियादी सुविधाएं तक मयस्सर नहीं। सवाल ये उठता है कि जब मंत्री का इतना करीबी गांव विकास से वंचित है, तो बाकी क्षेत्र का क्या हाल होगा?स्थानीय लोगों ने बताया कि वे कई बार ग्राम प्रधान और अधिकारियों से पक्के रास्ते की मांग कर चुके हैं, लेकिन हर बार आश्वासन मिला, काम नहीं। ना सड़क है, ना नालियां, और ना ही पीने का साफ पानी। अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या ग्राम प्रधान सिर्फ फाइलों में विकास दिखा रहे हैं? या फिर दलित बस्तियों की आवाज़ जानबूझकर अनसुनी की जा रही है?
“क्या हम इंसान नहीं हैं?”
गांव की बुज़ुर्ग महिलाओं और पुरुषों ने वीडियो में अपनी पीड़ा को व्यक्त करते हुए कहा – “नेता लोग चुनाव के समय आते हैं, बड़े-बड़े वादे करते हैं, मगर बाद में कोई नहीं लौटता। हमें अपनों की अर्थी तक सम्मान से नहीं ले जाने दिया जाता। क्या हम इंसान नहीं हैं?”परिजनों का कहना है कि यह अपमान केवल एक परिवार का नहीं, बल्कि पूरे दलित समाज का है। “जिस समाज को आज भी अंतिम यात्रा के लिए रास्ता नहीं दिया गया, उसकी हालत का अंदाज़ा मंत्री जी को तो जरूर होगा। फिर भी चुप्पी क्यों?” – यह सवाल हर ओर गूंज रहा है।
भाषणों में विकास, ज़मीनी हकीकत में बेबसी
इस वीडियो के वायरल होते ही सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। यूज़र्स सीधे तौर पर मंत्री अनिल कुमार और ग्राम प्रधान को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। “दलित मंत्री होकर भी अगर अपने ही समाज के लोगों को इज्जत से अंतिम संस्कार तक का हक नहीं दिला सकते, तो ऐसे विकास का क्या मतलब?” – ऐसे तीखे सवाल सामने आ रहे हैं।
क्या कोई सुनेगा इस आवाज़ को?
श्मशान घाट तक पक्का रास्ता बनाना कोई बड़ा प्रोजेक्ट नहीं है। फिर भी अगर ऐसी बुनियादी सुविधा भी मुहैया नहीं कराई जा रही, तो यह शासन और प्रशासन दोनों के लिए शर्म की बात है। अब देखना यह है कि मंत्री अनिल कुमार और स्थानीय प्रशासन इस वायरल वीडियो के बाद जागते हैं या फिर यह मामला भी बाकी वादों की तरह सिर्फ कागजों और मंचों पर ही सिमट कर रह जाएगा।
विडंबना ये है कि मंत्री जी के भाषणों में ‘समावेशी विकास’ की बातें होती हैं, लेकिन उनके घर के पास ही दलित समाज अंतिम यात्रा भी अपमानित होकर निकालने को मजबूर है।

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