हर बार लोकतंत्र की बात करते हैं, लेकिन विपक्ष का मुँह बंद करते हैं। यह कैसा लोकतंत्र है?"
नई दिल्ली। संसद का मानसून सत्र जैसे ही शुरू हुआ, विपक्ष ने सत्ता पक्ष के रवैये पर तगड़ा सवाल उठा दिया। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया जाता। “मैं दो शब्द कहना चाहता था, लेकिन विपक्ष को अलाउड नहीं है।” उनका यह बयान जैसे ही मीडिया में तैरने लगा, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट के ज़रिए गुस्सा जाहिर कर दिया। "नेता प्रतिपक्ष को बोलने नहीं दिया जाता। तैयार हैं तो आकर चर्चा करें। हर बार लोकतंत्र की बात करते हैं, लेकिन विपक्ष का मुँह बंद करते हैं। यह कैसा लोकतंत्र है?"
प्रियंका का यह बयान सत्ता पक्ष को सीधा सवालों के घेरे में खड़ा करता है। संसद के भीतर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और अन्य संवेदनशील मुद्दों पर विपक्ष चर्चा चाहता था, लेकिन कार्यवाही बार-बार स्थगित होती रही। सत्ता पक्ष के नेता खुलकर बोलते रहे, लेकिन विपक्ष को सीमित समय और अधिकार दिया गया। यह सिर्फ एक बयान नहीं था, बल्कि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका पर हमला था। यह सवाल उठता है—जब बहस नहीं होगी, तो जवाबदेही कैसे तय होगी? और अगर जवाबदेही नहीं होगी, तो फिर लोकतंत्र का क्या मतलब रह जाएगा?
कांग्रेस अब इसे जन आंदोलन बनाने की तैयारी में है। सोशल मीडिया पर प्रियंका के बयान को “क्रेशर स्टाइल” में फैलाया जा रहा है। जवाब में सत्ता पक्ष इसे ड्रामा बताता है। लेकिन हकीकत यह है कि विपक्ष के सवाल दबाए जा रहे हैं—और यही लोकतंत्र का सबसे बड़ा खतरा है।
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