मां की अंतिम सांसों में दूर था, क्योंकि आंदोलन की सांसें थमी नहीं थीं।
जननी के ऋण और जन आंदोलन के धर्म के बीच फंसा एक बेटा।
तेरी सीख थी—महा मानवों का ऋण चुकाना... आज उसी राह पर तेरा बेटा खड़ा है।" व्यक्तिगत पीड़ा से उपजा सार्वजनिक संकल्प।
अहमदाबाद : बहुजन समाज पार्टी BSP के गुजरात और महाराष्ट्र कैडर कैंप की तैयारियों में जुटे एक कार्यकर्ता ने अपनी मां के निधन पर एक भावुक फेसबुक पोस्ट साझा किया है, जिसने हजारों लोगों को झकझोर दिया है। पोस्ट में लिखा है: माफ़ करना मेरी जननी, मेरी मां... तेरे अंतिम श्वास के वक्त 400km दूर होने की वजह से तेरे सामने उपस्थित नहीं रह पाया। तूने ही तो सिखाया था महा मानवों के ऋण को अदा करना। यह संदेश उस समय लिखा गया जब कार्यकर्ता गुजरात प्रदेश स्तरीय बैठक में भाग लेने अहमदाबाद में मौजूद था, जो आगामी 31 अगस्त को मुंबई में आयोजित बसपा कैडर कैंप की समीक्षा बैठक की तैयारी का हिस्सा थी। इस पोस्ट ने सोशल मीडिया पर व्यापक प्रतिक्रिया पाई है। कई लोगों ने इसे एक उदाहरण बताया कि कैसे सामाजिक आंदोलन में सक्रिय लोग निजी जीवन की कीमत पर भी अपने कर्तव्यों को निभाते हैं। वहीं कुछ ने सवाल उठाए कि क्या आंदोलन की प्राथमिकता व्यक्तिगत क्षणों से ऊपर होनी चाहिए।
यह घटना उस द्वंद्व को उजागर करती है जिसमें कई सामाजिक कार्यकर्ता फंसे रहते हैं—व्यक्तिगत जिम्मेदारियों और सार्वजनिक संघर्षों के बीच संतुलन बनाना। यह पोस्ट न केवल एक बेटे की पीड़ा है, बल्कि उस नैतिक बोझ की भी झलक देती है जो आंदोलनकारी अपने कंधों पर उठाए रहते हैं।
0 टिप्पणियाँ