समाज ने बच्चें को पढ़ने से रोका तो दबन गया कानून मंत्री
पढ़ाई करने के लिए किसी तरह से व स्कूल पहुंचा
स्टोरी। अपनी दृढ़ इच्छा के बल पर उसने किनारे लगाया औ पढ़ाई करने के लिए किसी तरह से स्कूल पहंुचा, लेकिन उसे क्लास में बैठने ही नहीं दिया गया। काफी जद्दोजहद के बाद जब जगह मिली तो सबसे पीछे मिली। इस दौरान जब उसे प्यास लगती तो उसे पानी का सार्वजनिक घड़ा अलग था। यह घड़ा यूंह ी अलग नहीं था। बल्कि उसके जैसे बच्चों को यह घड़ा एहसास कराता था िकवह ऐसी जाति से है, जिले लोग नीच कहकर अपमानित करते थें।पानी जैसी चीज में होने वाले फर्क को वह सहन न कर सका। बचपन से ही पहला विद्रोह उसका इसी बात पर फूटा कि बच्चों में ऊच-नीच का फर्क क्यों हालांकि विद्रोह का दुष्परिणाम भीउसे ही भुगतना पड़ा। उसे हर उस चीज को हासिल करने से रोका गया, जिससे उसे थोड़ी-बहुत भी खुशी मिलती थी। रोकने का सिलसिला पहले से चल रहा था। मग रवह नहीं रूका। वह विद्रोही बालक था। भीमराव सकपाल एक ब्राम्हण शिक्षक भीमराव को हमेशा सराहा करते थे। उन्हीें के कहने पर भीमराव ने अपने नाम से सकपाल हटा अम्बेडकर लगा लिया। अम्बेडकर को जिस बात से भी रोका गया, उसे उन्होंने हासिल करके दिखा दिया। उन्हें किताब पढ़ने से रोका गया , सो किताबों से ऐसी दोस्ती की कि भारत का पहला कानून मंत्री बन गए। शोषितों को ऐसा थामा कि आज भी उनके दिलों में जिंदा है। उन्हें भगवान के मंदिरों में जाने से रोका, खुद पीड़ितों के दिलों का भगवान बन गए। उन्हें विचारों से रोका, वह खुद विचारक हो गए। उन्हें धर्म के विधान से रोका, उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का संविधान लिख डाला। ऐसे थे डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर जिन्होंने बाधाओं को बना लिया था ताकत का स्त्रोत।
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