कोर्ट परिसर हो या अस्पताल सुरक्षा के बावजूद चल रही गोलियां,सुरक्षा व्यवस्था पर पर उठते सवाल

जमीनी स्तर पर सुरक्षा-व्यवस्था की रणनीति में अभी बड़ी खामियां..!!
तस्लीम बेनक़ाब
अपराधी जहां चाहे जिसको चाहे हत्या करने से चूकते नही हैं चाहे वह कोर्ट परिसर हो अस्पताल हो,दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश,सुरक्षा के  बावजूद हत्या हो रही हैं सवाल तो उठते ही हैं कि लोग कहा सुरक्षित हैं?अभी कुछ दिन पूर्व दिल्ली के साकेत स्थित अदालत परिसर में जिस तरह सरेआम गोलीबारी की घटना हुई,इससे पूर्व उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कोर्ट परिसर में बदमाशों ने पूर्व ब्लॉक प्रमुख योगेंद्र सिंह उर्फ भूरा की गोली मारकर हत्या कर दी थी उसी तरह बिजनौर जिले हमलावरों ने अदालत में घुसकर पेशी पर लाये गये एक आरोपी की ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर हत्या कर दी थी,ऐसे ही मुजफ्फरनगर में भी कोर्ट परिसर में कुख्यात विक्की त्यागी की हत्या कर दी गई थी,अब कुछ दिन पूर्व भी अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की तीन शूटर्स प्रयागराज के कॉल्विन हॉस्पिटल के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई,अभी हालहि में साकेत अदालत परिसर में एक महिला पर वकील ने वहां मौजूद बहुत सारे लोगों के बीच गोलियां चलानी शुरू कर दी!उससे एक बार फिर राजधानी दिल्ली व उत्तर प्रदेश और खासकर न्यायालयों के दायरे में सुरक्षा-तंत्र की हकीकत का ही पता चलता है! हालांकि कोर्ट परिसर में हर स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था के चाक-चौबंद रहने और उसमें किसी भी मोर्चे पर कोताही न बरतने के दावे अक्सर किए जाते रहते हैं! लेकिन आए दिन बाकी जगहों के अलावा संवेदनशील परिसरों के भीतर भी जैसी हिंसा के वाकये सामने आते हैं!उससे यही लगता है कि जमीनी स्तर पर सुरक्षा-व्यवस्था की रणनीति में अभी बड़ी खामियां मौजूद हैं!किसी व्यक्ति के लिए अपनी आपराधिक मंशा पूरी करना इतना आसान नहीं होगा! उसमें भी अदालत व अस्पताल जैसी संवेदनशील जगह पर सुरक्षा-व्यवस्था के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है!अदालतों की तरह अस्पताल परिसर में बहुस्तरीय सुरक्षा इंतजामों की व्यवस्था की गई होती हैं!अदालत में प्रवेश के लिए बने दरवाजों पर जांच के लिए सीसीटीवी कैमरों से लेकर मेटल डिटेक्टर सहित अन्य उपाय मौजूद हैं! लेकिन हैरानी की बात है कि इसके बावजूद एक व्यक्ति पिस्तौल जैसा घातक हथियार लेकर परिसर के भीतर प्रवेश कर जाता हैं और सरेआम हत्या का प्रयास हत्या कर देता हैं!सवाल है कि सुरक्षा में इतने बड़े स्तर पर चूक?तो इसके क्या कारण हैं और इसके लिए किसकी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए!कई बार कुछ वकील अदालत में प्रवेश करते हुए अपनी जांच कराने से मना कर देते हैं! यों सुरक्षा जांच से मना करने का कोई कारण नहीं होना चाहिए!लेकिन वहां इस काम के लिए मौजूद संबंधित टीमें या लोग क्या ऐसी आपत्तियों को स्वीकार कर लेते हैं?या फिर व अन्य स्तर पर भी लापरवाही बरतते हैं?अदालत परिसरों में आए दिन होने वाली ऐसी वारदात सुरक्षा संबंधी चिंता पैदा करती है! मुश्किल यह है कि पुलिस का समूचा तंत्र अपने कामकाज में ऐसा असर पैदा करने में शायद नाकाम रहा है!जो किसी आपराधिक मानस वाले व्यक्ति के भीतर किसी अपराध को अंजाम देने से पहले खौफ पैदा करे! सुरक्षा इंतजामों और जांच में कोताही से लेकर अपनी मौजूदगी के बेअसर होने के हालात में अपराधों पर काबू पाने की उम्मीद कैसे की जा सकती है!

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