भारतीय गुरु-शिष्य-परम्परा में गुरु के प्रति शिष्य द्वारा सेवा के साथ समग्र समर्पण ही सम्यक् विद्या-प्राप्ति का मूलाधार है - प्रो• मयंक

आजमगढ़। भारतीय शिक्षण मण्डल, गोरक्ष प्रांत के तत्त्वावधान में चिल्ड्रेन हॉयर सेकेंडरी स्कूल के परिसर में ‘भारतीय गुरु-शिष्य-परम्परा’ विषय पर परिचर्चा आयोजित हुई, जिसकी अध्यक्षता प्रधानाचार्य करुणापति मिश्र ने की। उक्त अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में विद्वत् परिषद्, उत्तर प्रदेश के संयोजक एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति-समिति के अखिल भारतीय सदस्य प्रो• प्रभुनाथ सिंह ‘मयंक’ ने कहा कि अपरा और परा विद्या की प्राप्ति के लिए गुरु के प्रति शिष्य द्वारा प्रणिपात, परिप्रश्न एवं श्रद्धा-सेवा-समर्पण-जैसे सूत्रों को व्यवहार में लाना आवश्यक है। प्रो• मयंक ने इस बात पर बल दिया कि विद्याध्ययन के क्षेत्र में संस्कार, नैतिकता, समरसता , समन्वय, बंधुत्व, लोकोपकार और समर्पण द्वारा राष्ट्र-संवर्धन, राष्ट्र-भक्ति तथा विश्व-मार्गदर्शन का महान् लक्ष्य सिद्ध होगा। उन्होंने शिव- सप्तर्षि, ब्रह्मा-नारद, नारद-वाल्मीकि-वेदव्यास, सूर्य- अश्वनी कुमार, बृहस्पति - भरद्वाज, वसिष्ठ-श्री राम, सांदीपनि-श्री कृष्ण, वर्तन्तु-कौत्स, आत्रेयपुनर्वसु-अग्निवेश, धन्वंतरि-सुश्रुत, वेदव्यास- शुकदेव, समर्थ गुरु रामदास-शिवाजी, रामकृष्ण परमहंस-विवेकानंद सम्बन्धी गुरु-परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा कि विद्या के द्वारा वैश्विक स्तर पर आदर्श जीवन मूल्यों की स्थापना की गयी थी। वर्तमान काल में शिक्षा के क्षेत्र में सर्वांगीण विकास के लिए उक्त आदर्शों को चरितार्थ करना सम्यक् उपलब्धि का हेतु बनेगा। 
उक्त अवसर पर विशिष्ट अतिथि डॉ• प्रवेश कुमार सिंह ने कहा कि भारत की सनातन संस्कृति में गुरु शिष्य परम्परा ही विद्या का मूल है,गुरु के प्रति शिष्य के समर्पण और शिष्य के प्रति गुरु का अनुराग ही भारत भारती को विश्व गुरु की पहचान दिलाने में सफल रहा है। डॉ• जे•पी• यादव और विद्यालय के प्रधानाचार्य करुणापति मिश्र ने परस्पर प्रेम, सद्भाव, सहिष्णुता, गुरुजनों के प्रति आदरभाव सम्पन्न मूल्यपरक उदात्त विचार, व्यवहार चरितार्थ करने के लिए दिशा-निर्देशन किया। कार्यक्रम का कुशल संयोजन युवा गतिविधि सह प्रांत प्रमुख डॉ• पंकज सिंह ने किया तथा कार्यक्रम का प्रभावी संचालन भारतीय शिक्षण मण्डल, गोरक्ष प्रांत के महानगर विस्तारक श्री उपेन्द्र सिंह तोमर ने किया।

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