कमजोर होती BSP और मायावती की चुनौती!
चंद्रशेखर 'रावण' का उदय और नई सोच!
लेखक- मनीष कुमार
उत्तर प्रदेश की सियासी ज़मीन एक बार फिर दलित नेतृत्व के भविष्य को लेकर गर्म हो रही है। साल 2027 का विधानसभा चुनाव न सिर्फ सत्ता के लिए लड़ाई होगी, बल्कि यह दलित राजनीति की दिशा तय करने वाला निर्णायक पड़ाव साबित हो सकता है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा), जो कभी दलित राजनीति की सबसे मज़बूत आवाज़ थी, आज अपने सबसे कमजोर दौर से गुज़र रही है। पिछले चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है, और नेतृत्व की अस्थिरता ने संगठन की जड़ों को और कमजोर किया है। मायावती अब पार्टी को फिर से खड़ा करने की कोशिश में हैं, लेकिन नई पीढ़ी की अपेक्षाओं को साधना उनके लिए आसान नहीं दिख रहा। दूसरी ओर, भीम आर्मी के संस्थापक और आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर 'रावण' एक नए राजनीतिक विकल्प के तौर पर उभर रहे हैं। उन्होंने दलित युवाओं को एक नई विचारधारा और संघर्ष की प्रेरणा दी है। संसद में पहुंचना उनके राजनीतिक सफर की महत्वपूर्ण उपलब्धि है, और अब वो जमीनी स्तर पर प्रभाव बढ़ा रहे हैं। आज का दलित वोटर परंपरागत नारेबाज़ी से आगे बढ़कर नीतियों, नेतृत्व की ईमानदारी और ज़मीनी कार्यों को तवज्जो दे रहा है। जहां BSP एक बार फिर सामाजिक न्याय की बात कर रही है, वहीं चंद्रशेखर एक ऐसे नेता के रूप में उभर रहे हैं जो बदलाव का प्रतीक बन सकते हैं। बसपा को अपने कैडर और जनाधार को दोबारा सक्रिय करना होगा। आजाद समाज पार्टी को अपने अभियान और विचारधारा को अधिक व्यापक स्तर पर ले जाना होगा। दलित राजनीति अब सिर्फ चेहरों की नहीं, सोच और भविष्य दृष्टि की राजनीति बन गई है। 2027 का चुनाव दलित नेतृत्व के पुनर्गठन का मौका है – क्या परंपरागत नेतृत्व अपनी पकड़ बरकरार रख पाएगा, या नया नेतृत्व उसे चुनौती देगा? इस बदलाव की बागडोर अब मतदाता के हाथ में है।
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