राजनीति में रिश्तों की परख और मायावती की अडिग प्रतिबद्धता!

"सत्ता बदलती रही, पर मायावती का समाज के प्रति समर्पण अडिग रहा!"
"स्वार्थ के तूफ़ानों के बीच बहनजी की निष्ठा एक चट्टान है!"
"राजनीति ने जिनको ऊंचाइयाँ दीं, वे भूल गए उन हाथों का सहारा!"
लखनऊ। बसपा नेता राजू पाल की हत्या ने न सिर्फ प्रदेश बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया था। यह हत्या विवाह के मात्र नौवें दिन हुई, और इस सदमे में डूबी उनकी पत्नी पूजा पाल के सिर पर बसपा प्रमुख मायावती ने संबल भरा हाथ रखा। बसपा प्रमुख ने न केवल उन्हें सहारा दिया, बल्कि उन्हें राजनीतिक मंच पर उतारते हुए बार-बार टिकट देकर चुनाव लड़वाया—जब तक कि वे विधायक नहीं बन गईं।
लेकिन जैसे ही बसपा का राजनीतिक जनाधार कमजोर होने लगा, पूजा पाल ने अपनी दिशा बदल दी। वे कभी समाजवादी पार्टी तो कभी भाजपा की ओर चली गईं। जिस पहचान को बहनजी ने कठिन समय में उन्हें दी थी, वह राजनीति के बदलते समीकरणों में धुंधली हो गई। यह घटना केवल एक उदाहरण नहीं है, ऐसे कई लोग हैं जिन्हें मायावती ने समाज के हाशिए से उठाकर मान-सम्मान की ज़िंदगी दी, लेकिन समय के साथ वे बहनजी के योगदान को भुला बैठे।
इसके बावजूद मायावती ने समाज के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी। धोखा और राजनीतिक अवसरवादिता के बावजूद वे आज भी बिना शिकायत, पूरी दृढ़ता और समर्पण के साथ समाज के लिए चट्टान की तरह खड़ी हैं। राजनीति में जहां स्वार्थ हावी रहता है, वहां बहनजी जैसे नेतृत्व की उपस्थिति एक विरल दृष्टांत है।

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