BSP के अकेले रण में कांपा महागठबंधन
दलित वोट बैंक का नया ठिकाना बना रही है मायावती?
3. 243 सीटों पर अकेली BSP: NDA को अप्रत्यक्ष फ़ायदा?
पटना | बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है। बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती के इस एलान ने कि “BSP 243 सीटों पर बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ेगी,” महागठबंधन (MGB) के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। यह कदम राज्य के दलित और पिछड़ा वोट बैंक के समीकरणों को नया मोड़ देने वाला माना जा रहा है।
BSP की रणनीति और सामाजिक संकेत
- पार्टी ने अकांश आनंद को बिहार इकाई की जिम्मेदारी सौंपकर संकेत दे दिया है कि BSP, उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में भी दलित-पिछड़ा समीकरण को फिर से संगठित करना चाहती है।- 'भाईचारा कमेटियों' के ज़रिए BSP सामाजिक न्याय और राजनीतिक विकल्प का संदेश देना चाहती है।
महागठबंधन के लिए कठिन चुनौती
- अब तक RJD और कांग्रेस को दलितों का अच्छा-ख़ासा समर्थन मिलता रहा है, लेकिन BSP की एंट्री से यह समर्थन बिखर सकता है।
- विश्लेषकों का मानना है कि दलित वोटों में बंटवारा NDA के पक्ष में अप्रत्यक्ष लाभ बन सकता है।
राजनीति में नया बैलेंस ऑफ पॉवर?
- AIMIM पहले ही महागठबंधन में जगह बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन RJD की बेरुख़ी के बाद उसकी राहें अलग हैं। BSP का स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ना अब एक तीसरा विकल्प बनकर उभर रहा है।
- कुछ सीटों पर BSP का अच्छा प्रदर्शन post-poll समीकरणों में नई दिशा तय कर सकता है।
क्या कहते हैं जानकार?
> "महागठबंधन की खामोशी में एक रणनीति छिपी हो सकती है, लेकिन BSP जैसी पार्टी का खुला मैदान में उतरना उन्हें बैकफुट पर ला सकता है।" — राजनीतिक
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